समावेशी शिक्षा के सिद्धांत Principles of inclusive education
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख समावेशी शिक्षा के सिद्धांत (Principles of inclusive education) में।
दोस्तों यहाँ पर आप समावेशी शिक्षा के मुख्य सिद्धांत के साथ ही समावेशी शिक्षा के कार्य क्षेत्र आदि के बारे में जान पायेंगे तो आइये शुरू करते है यह लेख समावेशी शिक्षा के सिद्धांत:-
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समावेशी शिक्षा के सिद्धांत Principles of inclusive education
समावेशी शिक्षा निम्न प्रकार के सिद्धांतों पर आधारित है:-
- माता-पिता का सहयोग :- समावेशी शिक्षा का यह सिद्धांत बताता है, कि बाधित बालकों के माता-पिता अगर शिक्षण कार्यक्रम में रुचि लेते हैं, तो शिक्षण कार्यक्रम को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है और बाधित बालकों को शिक्षित करके उनको आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।
- नियंत्रित वातावरण:- इस सिद्धांत के अनुसार बताया जाता है, कि बालक तथा बालिकाओं को एक ही कक्षा में पढ़ाया जाना चाहिए चाहे वह सामान्य बालक बालिकाएँ हो या फिर बाधित बालक बालिकाएँ हो और जो बाधित बालक बालिकाएँ होते हैं, उनको कम से कम विघ्न डालने वाला वातावरण प्रदान करना चाहिए अर्थात उनके लिए नियंत्रित वातावरण होना चाहिए।
- विशिष्ट प्रिक्रिया :- इस प्रक्रिया के अंतर्गत बताया जाता है, कि जो बजट बालक होते हैं, उनके माता-पिता को यह अधिकार होते हैं, कि उस विद्यालय की व्यवस्था आदि का निर्धारण और विश्लेषण करें, जिसमें वह अपने बाधित बालक बालिकाओं को शिक्षा के लिए पहुँच रहे हैं, ताकि उनको नियंत्रित वातावरण में अच्छी शिक्षा प्राप्त हो सके, यदि शिक्षण संस्था में शिक्षण संस्था की कार्य प्रणाली से माता-पिता असंतुष्ट होते हैं तो वह अपने बालकों को निकालकर दूसरी उपयुक्त संस्थान में प्रवेश दिला सकते हैं, जहाँ पर बाधित बालक बालिकाओं के अनुरूप उनको शिक्षित किया जा सके और अधिक प्रभावशाली वातावरण उत्पन्न किया जा सके।
- अभिवेदी शिक्षा :- यह सिद्धांत बताता है, कि सामान्य विद्यालयों से इस प्रकार की विद्यार्थियों की पहचान होनी चाहिए, जिनको विशिष्ट शिक्षा और विशेष सामग्री विशेष सहायता की आवश्यकता होती हो, उनको जो भी शिक्षा दी जाने वाली है, उसका स्वरूप पहले ही निश्चित किया गया हो, क्योंकि प्रत्येक छात्र की व्यक्तिगत रुचियाँ अलग-अलग होती हैं और उनकी व्यक्तिगत परीक्षा भी होनी चाहिए, इसके पश्चात सभी छात्रों को विशिष्ट शिक्षा के कार्यक्रम में किस प्रकार रखा जाए पर भी चर्चा होनी चाहिए समय-समय पर ऐसे बालकों की कठिनाइयाँ उनकी समस्याओं और प्रगति का भी परीक्षण होता रहना चाहिए।
- वैव्यक्तित्व शिक्षा कार्यक्रम:- जिन विद्यार्थियों को विशिष्ट शिक्षा की जरूरत होती है, उनको व्यक्तिगत शिक्षा कार्यक्रम या फिर विशिष्ट शिक्षा कार्यक्रम में शिक्षा प्रदान करनी चाहिए, जिससे उनको आवश्यकता अनुसार संसाधन प्राप्त हो सके और वह शिक्षित हो सके। इस प्रकार की शिक्षा उन बालकों की वर्तमान कार्य प्रणाली और विशेष आवश्यकताओं के अनुरूप ही दी जानी चाहिए।
- कोई भी निरस्त नहीं:- यह सिद्धांत बताता है, कि शारीरिक रूप से बाधित सभी बालकों को नि:शुल्क उपयुक्त शिक्षा प्राप्त होनी चाहिए, सामान्य शिक्षा संस्थानों में किसी बालक को स्वीकार अथवा अश्वीकार करने का विकल्प किसी भी विद्यालय की व्यवस्था में नहीं होना चाहिए।
- व्यक्तिगत भिन्नता :- व्यक्तिगत भिन्नता दो प्रकार की होती है 1. दो व्यक्तियों में अंतर 2. मनुष्य का स्वयं से भेद होना, दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है, कुछ छात्र अन्य छात्रों से अधिकांश गुण में सर्वप्रथम बिल्कुल अलग-अलग होते हैं, जो शिक्षा की ओर विशेष झुकाव रखते हैं, ऐसे छात्रों को विशेष आवश्यकता, विशेष शिक्षाके माध्यम से पूरी करनी चाहिए।
समावेशी शिक्षा के कार्य क्षेत्र Inclusive Education work field
समावेशी शिक्षा का मुख्य कार्य क्षेत्र बाधित बालक और उनकी शिक्षा से संबंधित तथा उनको आत्मनिर्भर बनाने से जुड़ा हुआ होता है। समावेशी शिक्षा शारीरिक तथा मानसिक रूप से बाधित बालकों को निम्न प्रकार की शिक्षा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सहायक सिद्ध होती है:-
- मानसिक मंद बुद्धि बालक जो शिक्षा के लिए योग्य न हो।
- बाधिर बालक जिन्होंने संप्रेषण में निपुणता तथा पढ़ना सीख लिया हो।
- श्रवणबाधित बालक
- अस्थिबाधित बालक
- अधिगम असमर्थी बालक
- विभिन्न प्रकार से अपंग बालक अर्थात बहुबाधित बालक
- मानसिक मंदबुद्धि बालक जो शिक्षा के योग्य हो
- अंधे छात्र जिन्होंने ब्रेल में पढ़ने लिखने का शिक्षण प्राप्त किया हो तथा उन्हें विशेष प्रशिक्षण की जरूरत हो।
दोस्तों यहाँ पर आपने समावेशी शिक्षा के मुख्य सिद्धांत (Principles of inclusive education) के साथ ही समावेशी शिक्षा के कार्य क्षेत्र पढ़े, आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
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