अधिगम के नियम Adhigam ke niyam
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है इस लेख अधिगम के नियम Adhigam ke niyam में। दोस्तो यहाँ पर आप विभिन्न अधिगम के नियम जान पायंगे जो TET और CTET परीक्षाओं में पूंछे जाते है, तो आइये शुरू करते है यह लेख अधिगम के नियम :-
इसे भी पढ़े :- शिक्षण अधिगम के सिद्धांत नोट्स
अधिगम के नियम Adhigam ke niyam
बात करें अधिगम की तो अधिगम मनोविज्ञान के प्राण के समान होते हैं और अधिगम के बिना मनोविज्ञान बिल्कुल मृत के समान हो जाता है, क्योंकि इसका सबसे प्रमुख कारण होता है, व्यवहार और अस्तित्व अधिगम की जाने वाली हर एक प्रिक्रिया व्यवहार के द्वारा ही संचालित होती है, जबकि मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक परीक्षणों ने सीखने के सिद्धांतों की व्याख्या करने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
वैसे सीखने के सिद्धांत दो होते हैं 'व्यवहारवादी सिद्धांत और संज्ञानात्मक सिद्धांत' थार्नडाइक महोदय ने तो अधिगम की क्रिया में प्रभाव को सबसे अधिक स्थान दिया है, उन्होंने कहा है, कि उद्दीपन का प्रभाव प्राणी पर जरूर पड़ता है और उद्दीपन के कारण ही वह किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया करने में रुचि दिखाता है,
क्योंकि यह प्रमाण के द्वारा स्पष्ट हो चुका है, कि कोई भी प्राणी जिस कार्य को करता है उसमें उसको संतोष मिलता है तो उस कार्य की उसकी उपयोगिता का अनुभव होता है और वह उस कार्य को करता है, जिस कार्य को करने में रुचि लेता है। यहाँ पर सीखने के कुछ नियम बताए गए हैं, जो दो प्रकार से है:-
अधिगम के नियम Adhigam ke niyam
विभिन्न प्रकार के प्रयोग करने के पश्चात थार्नडाइक महोदय ने कुछ नियमों की रचना की है, जो यहाँ पर दो प्रकारों में वर्गीकृत किए गए हैं:-
- सीखने के मुख्य नियम
- अधिगम के गौण नियम
सीखने के मुख्य नियम Main laws of learning
सीखने के मुख्य नियम निम्नप्रकार से है :-
तत्परता का नियम Law of Readiness
इसका अर्थ होता है, कि जब भी कोई प्राणी कोई कार्य करने के लिए तैयार होता है, तो उस प्रक्रिया में वह कोई कार्य करता है तो उसे कार्य करने में उसको आनंद मिलता है तभी वह उस कार्य को कर पाता है, यदि कोई भी व्यक्ति किसी कार्य को करने में आनंद प्राप्त नहीं करता तो वह उस कार्य को पूरा नहीं कर पाता है।
उसे उस कार्य को पूरा करने में तनाव और जूझलाहट का अनुभव होता है, क्योंकि वह कार्य रुचि के अनुरूप नहीं है और ना ही उसको उस कार्य को करने में आनंद मिल रहा है इस प्रकार से सीखने के नियम में सबसे पहले तत्परता का नियम आता है, यदि व्यक्ति पूरी तरीके से कोई क्रिया करने के लिए तत्पर है तो वह उस क्रिया को ठीक प्रकार से अच्छे से पूरा कर लेता है इसके अंतर्गत निम्न बातें आती हैं:-
- व्यवहार करने वाली संवाहक इकाई तत्पर होती है तो व्यवहार करने से संतोष की अनुभूति होती है।
- व्यवहार करने वाली इकाई जब कार्य करने के लिए तत्पर नहीं हो तो उसे कार्य को करने में मानसिक तनाव उत्पन्न होता है तथा कष्ट की अनुभूति होती है।
- जब व्यवहार करने वाली इकाई को बलपूर्वक कार्य करवाने के लिए तैयार किया जाता है तब उस कार्य को करने में असंतोष्ट कष्ट और तनाव की अनुभूति होती है।
तत्परता के नियम से कक्षा शिक्षण में यह बातें पता चलती है, कि किसी भी प्रकार का नवीन ज्ञान छात्र-छात्राओं को देने से पहले उनको मानसिक रूप से तैयार किया जाना चाहिए, यदि छात्र तथा छात्राएँ उस नवीन ज्ञान को ग्रहण करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है, तो वह नवीन ज्ञान उनको
बिल्कुल भी पसंद नहीं आएगा तथा वह अपने आप को तनावग्रस्त महसूस करेंगे, इसलिए कक्षा शिक्षण से पहले बालक तथा बालिकाओं की रुचिया क्षमता योग्यताओं को भी ध्यान में रखकर कोई भी कार्य प्रदान करना चाहिए, जिससे वह उसमें रुचि रखें और उसको सीखने के लिए तत्पर हो पाए।
अभ्यास का नियम Law of Experience
सीखने के इस नियम से स्पष्ट होता है, कि अभ्यास से व्यक्ति में पूर्णता आ जाती है। इस नियम को सबसे पहले परिभाषित हिलगार्ड और बोअर ने 1975 में किया था उन्होंने बताया था, कि अभ्यास का नियम बताता है, कि अभ्यास करने से उद्दीपक तथा अनुक्रिया का संबंध अधिक मजबूत होने लगता है, जबकि देने से संबंध कमजोर पड़ जाता है और विषयवस्तु विस्मृति होने लगती है, अर्थात जो हमने याद किया है, जो हमने पढ़ा है, सीखा है वह भी हम भूलने लगते हैं। अभ्यास का नियम दो भागों में विभक्त है:-
- उपयोग का नियम (Law of Use) :- इस नियम के द्वारा इस बात पर बल दिया जाता है, कि मनुष्य जिस कार्य को बार-बार करता है, बार-बार दोहराता है वह उसको शीघ्र ही जल्दी ही अच्छे तरीके से करना सीख जाता है।
- अनुपयोग का नियम (Law of Disuse) :- इस नियम के द्वारा यदि किसी विषयवस्तु या क्रिया को दोहराना बंद कर दिया जाता है, तो हम उसे धीरे-धीरे भूलने लगते हैं।
अभ्यास का नियम कक्षा शिक्षण में बताता है, कि कक्षा शिक्षण में बालकों को जो भी विषयवस्तु, पाठ्यक्रम सिखाया गया है, जो भी क्रिया उनको सिखाई गई है। इसका अभ्यास बार-बार करना चाहिए, ताकि वह पूरी तरीके से अभ्यस्त हो सके। कक्षा में पढ़ाई गई विषयवस्तु का मौखिक अभ्यास भी करते रहना चाहिए,
जो भी विषय वस्तु पाठ्यवस्तु शिक्षक के द्वारा पढ़ाई जाती है, शिक्षक को समय-समय पर उसका पूंर्ननिरीक्षण अवश्य करते रहना चाहिए। कक्षा शिक्षण में बालकों को समय-समय के अनुसार वाद विवाद तार्किक माध्यम से विषय वस्तु को अच्छी तरह सीखने का अवसर प्रदान करते रहना चाहिए।
प्रभाविता का नियम Law of Effect
थार्नडाइक महोदय के इस नियम के अनुसार बताया गया है, कि संतोष और असंतोष इस नियम में बहुत जरूरी होते हैं, इसलिए इस नियम को संतोष और असंतोष का नियम भी कहा जाता है। थार्नडाइक महोदय ने कहा है, कि जिस भी कार्य को करने से व्यक्ति को संतोष मिलता है, तो वह उस कार्य को बार-बार करता है
और जिन कार्यों को करने में असंतोष मिलता है वह उन्हें किसी भी कीमत पर करना ही नहीं चाहता, अर्थात संतोषप्रद परिणाम मिलने से व्यक्ति के शरीर में एक ऊर्जा का संचार होता है और वह ऊर्जा उस कार्य को करने के लिए व्यक्ति को बार-बार मजबूर कर देती है, जबकि असंतोष परिणाम प्राप्त होने पर किसी भी प्रकार से उस व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाए, लेकिन वह कार्य उसको कष्टदायक और असंतोषप्रद्ध ही लगता है, जबकि किसी भी क्रिया का परिणाम असंतोषप्रद होता है, तो भी कोई भी व्यक्ति उसे क्रिया उस कार्य को करना नहीं चाहता है।
हिलगार्ड तथा बोअर ने 1975 में इस नियम की व्याख्या भी, कि और बताया कि प्रभाव के नियम में किसी उद्दीपक व अनुक्रिया का संबंध उसके प्रभाव के आधार पर मजबूत और कमजोर होता है। यह संबंध ऐसा होता है, कि जब कार्य करने में व्यक्ति में संतुष्टजनक प्रभाव होता है, तो इससे संबंध की शक्ति बढ़ जाती है संबंध मजबूत हो जाता है, जबकि असंतोषजनक प्रभाव होने पर संबंध टूट जाता है और संबंध की जो नींव होती हैं, वह निष्प्रभाव होने लगती हैं।
प्रभाव के नियम का कक्षा शिक्षण में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान देखने को मिलता है, क्योंकि छात्रों को सीखने के लिए प्रोत्साहित और अभिप्रेरित किया जा सकता है। पुरस्कार देकर तथा दंड की व्यवस्था करके बालक सीखने के प्रति प्रेरित होते हैं। इस नियम के द्वारा यह भी स्पष्ट होता है, कि विद्यालय में छात्रों को उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताओं तथा क्षमताओं को देखकर भी अधिगम क्रियाएँ कराई जानी चाहिए कक्षा शिक्षण में नवीन क्रियाओ को सिखाते समय विभिन्न शिक्षण विधियों का भी उपयोग होना चाहिए, जो नवीन और रोचक हो।
शिक्षण कराते समय छात्र तथा छात्राओं को इस प्रकार से पढ़ाना चाहिए, कि संतोषप्रद अनुभव छात्र-छात्राओं को प्राप्त हो और उनको असंतोषप्रद परिणाम प्राप्त न हो किसी भी प्रकार का नकारात्मक दृष्टिकोण निर्मित ना हो इन बातों का ध्यान प्रभाव के नियम के अनुसार कक्षा शिक्षण में करना चाहिए।
अधिगम के गौण नियम Secondary Laws
- बहु अनुक्रिया का नियम (Law of Multiple Response) :- यह नियम बताता है, कि व्यक्ति के सामने जब कोई भी समस्या आती है, तो वह उसको सुलझाने के लिए विभिन्न प्रकार के तरीकों का उपयोग करता है, विभिन्न अनुक्रियाओं का सहारा लेता है और यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक कोई सही अनुक्रिया उस समस्या का समाधान न कर दे। इस प्रकार से व्यक्ति को संतुष्टी प्राप्त होती है।
- मानसिक स्थिति का नियम (Law of Mental Set) :- यह नियम बताता है, कि कोई भी प्राणी जब तक कोई भी अनुक्रिया कोई भी योग्यता नहीं सीख सकता जब तक वह मानसिक रूप से उसको सीखने के लिए तैयार नहीं है, अर्थात कोई भी व्यक्ति अपनी रुचि और तत्परता के विपरीत किसी क्रिया को करता है, तो वह उस क्रिया को पूरा नहीं कर पाता है, इसीलिए इस नियम के अनुसार व्यक्ति को मानसिक रूप से किसी भी क्रिया के प्रति तैयार होना आवश्यक होता है।
- आशिक क्रिया का नियम (Law of Partial Activity) :- यह नियम इस क्रिया पर बल देता है, इस बात पर बल देता है, कि कोई प्रतिक्रिया संपूर्ण स्थिति के प्रति नहीं होती यह केवल संपूर्ण स्थिति के कुछ पक्षो अथवा अंशो के प्रति ही होती है। इस नियम के अनुसार किसी कार्य को अंशत: विभाजित करके किया जाता है, तो वह शीघ्रता से सीखा जा सकता पूर्ण हो सकता है, अर्थात कोई क्रिया अगर सीखनी हो तो उसे छोटे-छोटे भागो में विभाजित करके आसानी से सीख सकते हैं।
- सादृश्य अनुक्रिया का नियम (Law of Similarity or Analogy):- यह नियम बताता है, कि कोई भी प्राणी नवीन ज्ञान उस स्थिति में जल्दी सीखता है, जब उसका नवीन ज्ञान पुराने अनुभव से मिला-जुला होता है, अर्थात अगर कोई भी व्यक्ति पहले किसी समस्या का अनुभव कर चुका है, तो वह नवीन प्रतिक्रिया इस प्रकार करेगा जो वह पहले किसी भी परिस्थिति में कर चुका है। समान तत्वों के आधार पर नवीन ज्ञान का पुराने अनुभवों से आत्मसात या सामान्यीकरण करने पर सीखने में सरलता प्राप्त होती है।
- सहचार्यात्मक स्थानांतरण का नियम (Law of Associative) :- इस नियम के अनुसार जो अनुक्रिया किसी उत्तेजक के प्रति होती है, वह अनुक्रिया बाद में उस उत्तेजना से संबंधित है तथा किसी अन्य उद्दीपक के प्रति भी होने लगती है। थार्नडाइक ने अनुकूलित अनुक्रिया को ही सहचर्य परिवर्तन के नियम के रूप में व्यक्त किया है।
दोस्तों यहाँ पर आपने अधिगम के नियम (Adhigam ke niyam) laws of Learning पढ़े। आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
इसे भी पढ़े :-
एक टिप्पणी भेजें