पठन का अर्थ, पठन कौशल के प्रकार Type of Reading skill

पठन का अर्थ, पठन कौशल के प्रकार Type of Reading skill 

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पठन का अर्थ, पठन कौशल के प्रकार

पठन कौशल का अर्थ Meaning of Reading Kaushal 

पठन को वाचन भी कहा जाता है और इसको अंग्रेजी में रीडिंग Reading कहते हैं, किंतु पठन और वाचन दोनों ही अलग-अलग होते हैं, इनमें भी अंतर होता है। वाचन का अर्थ एक प्रकार से जोर-जोर से पढ़ना होता है, जिसका आनंद श्रोता ले सकें, 

जबकि पठन का अर्थ होता है जोर से और मौन होकर पढ़ना जिससे पठित विषय वस्तु या सामग्री समझ में आ सके, इसलिए पठन के अंतर्गत हम स्वसर पठन और मौन पठन दोनों को रखते हैं और वाचन का उद्देश्य यही होता है, कि वाचन करने वाला स्वयं वाचन का आनंद उठा सके और मानसिक विकास में अपनी गति पैदा करें। 

पठन के प्रकार Type of Reading skill 

पठन को दो प्रकार में विभाजित किया गया है:- 

  1. सस्वर पठन 
  2. मौन पठन 

सस्वर पठन Reading aloud

यह एक ऐसा पठन होता है, जिसका तात्पर्य होता है तीव्रता से और स्वर के साथ पठन करना। इस प्रकार से पठन करना, कि वह प्रभावशाली हो और लोगों को प्रभावित कर सके। आप लोगों ने हमेशा अनौपचारिक अवसरों पर देखा होगा, कई बार व्याख्यान देते हुए और बाद विवाद प्रतियोगिताओं में गोष्ठियों में भी देखा होगा की बहुत से ऐसे वक्ता होते हैं, जो प्रभावशाली ढंग से बोलते हैं इस प्रकार से अपने विचार रखते हैं, कि उनकी भाषा शुद्ध और प्रभावपूर्ण होती है और श्रोताओं पर विशिष्ट प्रभाव भी डालती है। 

यही एक अच्छा वाचन अच्छा पठन कहलाता है, जिन लोगों का स्वसर पठन अच्छा नहीं होता है, तो वह कहीं पर भी किसी भी मंच पर जाने से घबराते हैं और बोल नहीं पाते हैं अगर वह कभी चले भी जाते हैं, तो ठीक प्रकार से नहीं बोल पाते हैं और उपहास का पात्र बन जाते हैं, चाहे कोई भी सेमिनार हो कोई भी सम्मेलन हो कोई भी सामाजिक या पारिवारिक उत्सव हो वहाँ पर जिस व्यक्ति का वाचन अच्छा ना हो कभी जाने की हिम्मत ही नहीं करता है इसलिए जो स्वसर वाचन होता है, उसके द्वारा व्यक्ति में आत्मविश्वास जगता है और भाषा प्रयोग की क्षमता विकसित होती है, उसका संकोच हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है और उसमें नेतृत्व के गुणों का अपने आप विकास हो जाता है।

सस्वर पठन के उद्देश्य Objectives of reading aloud

सस्वर पठन माता-पिता और शिक्षकों के द्वारा अधिक प्रभावी और त्रुटि रहित बन सकता है, जिसके लिए निम्न प्रकार की बातें जरूर ध्यान में रखना चाहिए:- 

  1. बालक को वाचन के समय टोकना नहीं चाहिए।
  2. वाचन के समय उतार-चढ़ाव उच्चारण भाव अनुकूल शुद्ध  हो इसका ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
  3. अध्यापक को  बालकों के उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि छात्र हमेशा कुछ अक्षरों में विभेद नहीं कर पाते हैं।
  4. विराम चिन्हो पर विशेष ध्यान देते हुए उच्चारण करना चाहिए तथा भावों के अनुसार उत्तर चढ़ाव पर ध्यान रखना चाहिए।
  5. श्रोताओं के अनुसार अपने स्वर को तीव्र और मंद करना चाहिए।
  6. अपने उच्चारण पर ग्रामीण और स्थानीय प्रभाव नहीं पढ़ने देना चाहिए।

सस्वर पठन के गुण Merits of reading aloud

  1. शुद्ध ध्वनियों का ठीक प्रकार से ज्ञान होना चाहिए, जबकि उच्चारण शुद्ध होना चाहिए।
  2. वक्ता को इस बात का ध्यान होना चाहिए, कि किस बात पर कितना बल दिया जाना है।
  3. स्वर की स्पष्टता जरूर होना चाहिए बहुत से लोग शब्दों को चबा चबाकर बोलते हैं यह नहीं होना चाहिए।
  4. स्थिति के अनुसार विराम चिन्हो का प्रयोग करना चाहिए, भाषा में प्रवाह हो और गति पर ध्यान पूरी तरीके से होना चाहिए ना बहुत तेजी से बोलना चाहिए ना रुक-रुक कर धीरे-धीरे बोलना चाहिए।
  5. स्वर में रसात्मकता होनी चाहिए उसमें नीरसता बिलकुल नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह श्रोता जनों को पसंद नहीं होती है।
  6. वचन के समय वक्ता को आनंद की अनुभूति होनी चाहिए वक्ता को स्वयं वाचन में रुचि लेनी चाहिए स्वयं श्रोता भी रुचि ले सकते हैं।
  7. वाचन के समय मुद्रा का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए जैसे की आंखें झपकना, उंगलियाँ चबाना, जमीन की तरफ देखना आत्मविश्वास हीनता का परिचायक होता है।

सस्वर पठन के प्रकार Types of reading aloud

सस्वर पठन के दो प्रकार होते हैं अर्थात दो भेद होते हैं 1.  आदर्श वाचन तथा 2. अनुकरण वाचन। आदर्श वाचन शिक्षक के द्वारा दिया जाता है और अनुकरण वचन विद्यार्थियों के द्वारा यह वाचन दो भागों में विभाजित किया गया है, जिसको व्यैक्तित्व वाचन और सामूहिक वाचन कहा जाता है, जो माध्यमिक कक्षाएँ होती हैं, उनमें व्यैक्तित्व वाचन अधिक उपयोगी होता है 

इसमें छात्रों की कमियों को व्यक्तिगत रूप में दूर कर सकते हैं, जबकि छोटी कक्षाओं में अकेला बालक कभी संकोच के कारण तो कभी अन्य कारण से बोलने में घबराता है, इसीलिए वहाँ पर सामूहिक वाचन कराया जाता है और धीरे-धीरे उच्चारण का अभ्यास हो जाने पर संकोच दूर होने लगता है।

मौन पठन Silent reading

लिखी हुई भाषा को बिना किसी तेज उच्चारण के शांतिपूर्वक बैठकर पढ़ना और उसका अर्थ ग्रहण करना मौन पठन मौन वाचन के अंतर्गत आता है। इस पठन का अभ्यास अध्यापक विद्यार्थी के जीवन में एक स्थाई महत्व की बात जोड़ता है, क्योंकि यह पाठन विशेष कर आजीवन तक साथ देता है और इसका प्रयोग कोई भी व्यक्ति जरूर करता है, जिसको पढ़ना लिखना आता हो।

मौन पठन का महत्व Importance of silent reading

  1. समय की बचत:- इस पठन में समय की बचत होती है, क्योंकि दोनों प्रकार के पठन का शोध किया गया अनुसंधान किया गया तो पता चला, कि एक व्यक्ति स्वसर  पठन में 1 मिनट में लगभग 160 शब्द ही बोल सकता है, जबकि मौन पठन में कक्षा 8 का बालक भी 250 से 350 शब्दों को पढ़ सकता है।
  2. श्रम और शक्ति की बचत:- मौन पठन में सस्वर पठन की तुलना में समय और शक्ति की बचत होती है, अगर सस्वर पठन लगातार 4 घंटे तक कराया जाता है तो उसमें थकान अवश्य होती है, जबकि मौन पठन के दौरान 4 घंटे लगातार करने के पश्चात भी कोई थकान नहीं होती है। वहीं दूसरी तरफ सस्वर पठन में तीव्र ध्वनि और श्रवण के कारण विषय वस्तु के अर्थ ग्रहण करने में बहुत बाधा पहुंचती है, जो श्रोतागण होते हैं वह पूरी विषय वस्तु का अर्थ ग्रहण नहीं कर पाते हैं, जबकि मौन पठन के अंतर्गत जो भी पठन कर रहा है वह अच्छी तरीके से संपूर्ण विषय वस्तु को समझ सकता है, इस प्रकार से इस पठन में श्रम शक्ति दोनों की ही बचत हो जाती है।
  3. व्यक्तिगत प्रयोग में उपयोगी:- यह पठन व्यक्तिगत प्रयोग की दृष्टि से भी बहुत ही उपयोगी होता है, क्योंकि इसका प्रयोग हर एक व्यक्ति के द्वारा बिना किसी आयोजन के भी किया जाता है। मौन पठन सर्वाधिक सर्व सुविधा पूर्ण और व्यावहारिक तरीका होता है, इसलिए इसका उपयोग बिना किसी उद्देश्य के भी घर पर बैठकर मनोरंजन के लिए तथा अन्य किसी भी प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने के लिए करते हैं, इसीलिए अध्यापकों को मौन पठन पर अधिक ध्यान देना चाहिए, तथा बालकों को प्रोत्साहित करना चाहिए।

मौन पठन के प्रकार Types of silent reading

  1. गहन अध्ययन:- मौन पठन का यह एक महत्वपूर्ण प्रकार है, जिसे गंभीर रूप गहन अध्ययन होता है, इसमें विचार प्रधान विषय वस्तु का गंभीरता पूर्वक अध्ययन होता है और सभी तत्व और विचार का अर्थ स्पष्ट आराम से हो जाता है। गंभीर अध्ययन के कारण इस पठन में पठन की गति की तुलनात्मक रूप से कमी होती है, किंतु यहाँ पर अर्थ की दृष्टि से उसको समझ पाना उस विषय वस्तु को सीख पाना अधिक इंपॉर्टेंट होता है।
  2. द्रुत पठन :- यह पठन अधिकतर मनोरंजन के लिए होता है, इसमें कहानी उपन्यास नाटक आदि को थोड़ा तीव्र गति से पढ़ते हैं, फिर पठन की जो विषय वस्तु होती है, उसमें बुद्धि की अपेक्षा भावना प्रबल दिखाई देती है, इस प्रकार की विषय वस्तु घटनाओं विचारों और तथ्यों को सरलता पूर्वक वर्णित कर देती है और इसको समझ पाना भी बड़ा ही आसान होता है।
  3. विहंगावलोकन :- जब किसी भी तथ्य की पुष्टि करने के लिए उसकी प्रामाणिकता के लिए कई अन्य स्रोतों से या अन्य ग से कोई आवश्यक अंग को पढ़ा जाता है तो उसको ही विहंगावलोकन किसके नाम से जाना जाता है यह एक विशेष प्रकार की चाल है इसमें विभिन्न कोर्स संदर्भ ग अधिक पर अवलोकन का ढंग आना चाहिए साथ ही आवश्यक को कैसे ग्रहण करना है और अनावश्यक को किस प्रकार छोड़ना है आदि पर भी ध्यान देना चाहिए। 

मौन पठन के उद्देश्य Objectives of silent reading

  1. ज्ञानात्मक :- छात्रों की शब्द शक्ति में भंडार करना छात्रों को वाक्य रचना और ज्ञान विभिन्न शैलियों से परिचित कराना तथा मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं का सामान्य ज्ञान करना।
  2. कौशल :- छात्रों को उचित आसन में बैठाकर पूर्ण प्रयोग से पठन करने में प्रशिक्षित करना छात्रों को अर्थ ग्रहण करते हुए तीव्र गति से मौन पठन करने का अभ्यास करवाना छात्रों में लिखित सामग्री का अर्थ एवं भाव ग्रहण करने की योग्यता विकसित करना छात्रों को लिखित सामग्री का विश्लेषण कर उसकी समीक्षा करने में निपुण करना।
  3. रुचि:- छात्रों की अध्ययन में रुचि उत्पन्न करना छात्रों में समीक्षा की रुचि उत्पन्न करना छात्रों को अध्ययन द्वारा अवकाश के चरणों का उपयोग करने के लिए प्रेरित करना छात्रों को किसी बात को स्वयं समझने के लिए प्रेरित करना।
  4. अभिवृत्ति :- छात्रों में भाषा सीखने एवं विभिन्न ज्ञान प्राप्त करने की प्रवृत्ति का विकास करना छात्र में भाषा साहित्य  जाति धर्म और संस्कृति के प्रति आदर और आस्था का भाव उत्पन्न करना।

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