ऐनिलिडा संघ के लक्षण Phylum Annelida ke Lakshan

ऐनिलिडा संघ के लक्षण Phylum Annelida ke Lakshan

हैलो दोस्तों आपका इस लेख ऐनेलिडा संघ के लक्षण (Symptoms of phylum Annelida) में बहुत-बहुत स्वागत है। दोस्तों यह अकेशरूकीय जंतुओं का संघ है जिसमें आप ऐनेलिडा संघ के लक्षण वर्गीकरण

फाइलम एनलिडा के दो उदाहरण, फाइलम ऐनेलिडा के लक्षण एवं उदाहरण, ऐनेलिडा संघ के सामान्य लक्षण एनीलिड़ा संघ का नामकरण आदि के बारे में जानेंगे, तो दोस्तों शुरू करते है, आज का यह लेख ऐनेलिडा संघ के सामान्य लक्षण:-


ऐनिलिडा संघ के लक्षण

संघ ऐनेलिडा किसे कहते हैं what is Phylum Annelida

संघ ऐनेलिडा में उन जंतुओं को शामिल किया गया है, जिनका शरीर बेलनाकार लंबा कोमल तथा कृमि के जैसा होता है। इनका शरीर खंडों में विभक्त होता है

अर्थात इनके शरीर पर खंड बने हुए होते हैं। इस संघ के जंतुओं में प्रचलन के लिए सीटी (Ceatea) नामक संरचना भी पाई जाती है। ऐनेलिडा शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से मिलकर हुई है,

Annulus = Small Rings  अर्थात छोटे-छोटे छल्ले Edos = Form/Worm जिसका अर्थ है, कृमि इस प्रकार से कह सकते हैं, कि वे जीवधारी जिनके शरीर पर छोटे-छोटे छल्ले पाए जाते हैं।

तथा जिनका शरीर लंबा बेलनाकर और कृमि के समान होता है, उन सभी जंतुओं का संघ ऐनेलिडा के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है।

ऐनेलिडा संघ का प्रमुख लक्षण कि इसके सभी जंतुओं के शरीर पर छोटे-छोटे छल्ले पाये जाते है। इन्ही छोटे-छोटे छल्लो के कारण से संघ ऐनेलिडा के जंतुओं को कहीं भी आसानी से पहचाना जा सकता है।

ऐनेलिड़ा का नामकरण Nomenclature

छोटे-छोटे रिंग वाले लंबे कृमि के समान प्राणियों का अध्ययन करके सर्वप्रथम लैमार्क (Lamark) ने 1801 ईसवी में इन्हें एक संघ Phylum में वर्गीकृत किया और इनका नाम

एनीलिडा दिया। वर्तमान में एनीलिडा संघ के जीव-जंतुओं की 10,000 से अधिक जातियाँ (Species) ज्ञात हैं, जबकि कई प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी है।

ऐनेलिडा संघ के लक्षण Phylum Annelida ke Lakshan

ऐनेलिडा संघ के लक्षणों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है:-

  1. आवास एवं प्रकृति - संघ ऐनेलिडा के जीव जंतु संपूर्ण विश्व में नम मिट्टी में जल में बिलों में रहते हैं एवं कुछ जंतु परजीवी (Parasite) भी होते हैं। ऐनेलिडा संघ के जंतु मांसाहारी सर्वभक्षी और रक्त खाने वाले होते हैं।
  2. शारीरिक आकृति - संघ ऐनेलिडा के जंतु अधिकतर शरीर में बेलनाकार, कोमल तथा हमेशा लंबे आकार के होते हैं।
  3. सममिति - इस संघ के जंतु त्रिजनन स्तरीय जंतु होते हैं।
  4. खंडी भवन - ऐनेलिडा संघ का सबसे प्रमुख लक्षण इस संघ के जंतुओं का छोटे-छोटे छल्लो का धारण करना है। इन जंतुओं के पूरे शरीर पर छल्लो के समान संरचना होती है, और पूरा शरीर खंडों में विभाजित होता हैं, जिसे समखंडीभवन भी कहते हैं, जबकि कुछ जंतुओं में यह खड़ीभवन बाहर होता है, तो कुछ जंतुओं में आंतरिक भी होता है।
  5. प्रचलन - संघ ऐनेलिडा के जंतुओं में प्रचलन काइटिन  की बनी हुई सीटी नामक संरचना से होता है। यह पेशियों के द्वारा नियंत्रित रहती है, जबकि कुछ जंतुओं में सीटी पंखे की आकृति के संरचना में होते हैं जिसे पेरापोडिया कहा जाता है।
  6. देहभित्ति - संघ ऐनेलिडा के जंतुओं की देहभित्ति का बाहरी आवरण पतली क्यूटिकल के स्तर से ढका हुआ रहता है, जबकि नीचे कोशिकीय स्तर मोटा एपिडर्मिस (Apidermis) का बना होता है। इस स्तर के नीचे ही अनुदैर्ध्य पेशियाँ पाई जाती है।
  7. देहगुहा - संघ ऐनेलिडा के जंतुओं की देहगुहा वास्तविक देहगुहा कहलाती है क्योंकि यह पूर्णतया विकसित होती है, जो शीजोसीलिक प्रकार की होती है।
  8. पोषण और उत्सर्जन - संघ ऐनेलिडा के जंतुओं में पोषण सर्वभक्षी मांसाहारी तथा परजीवी प्रकार का होता है, जबकि इनकी आहार नाल पूर्ण सीधी होती है, तथा पाचन वाह्य कोशिकीय प्रकार का होता है। इन जंतुओं में उत्सर्जन नेफ्रीडिया नामक संरचना से होता है, जो शरीर के बाहर अथवा आहार नाल में खुलते हैं।
  9. परिसंचरण तंत्र - संघ ऐनेलिडा के जंतुओं में परिसंचरण तंत्र विकसित होता है, जो ऐनेलिडा संघ का लक्षण है। संघ ऐनेलिडा के जंतुओं में परिसंचरण तंत्र खुले प्रकार का एवं बंद प्रकार का दोनों प्रकार का ही पाया जाता है।  संघ ऐनेलिडा के जंतुओं के संपूर्ण शरीर में रक्त वाहिनी और रक्त कोशिकाओं का जाल फैला रहता है, रक्त में श्वसन वर्णक हीमोग्लोबिन और हीमोसाइएनिन पाया जाता है, जो रक्त में घुलनशील अवस्था में होता है। इन प्राणियों के रक्त में विभिन्न प्रकार की रक्त कणिकाएँ भी पाई जाती हैं, जबकि कुछ जंतुओं में ह्रदय में वाल्व भी देखने को मिलते हैं।
  10. श्वसन तंत्र - संघ ऐनेलिडा में श्वसन तथा श्वसन अंगक  अनुपस्थित होते हैं। इन जंतुओं में श्वसन क्रिया बाहरी सतह के द्वारा या गिल्स के द्वारा होती है।
  11. तंत्रिका तंत्र - ऐनेलिडा संघ का लक्षण है, कि इसमें सुविकसित तंत्रिका तंत्र पाया जाता है। इसके अंतर्गत गैन्ग्लिया, संयोजक तंत्रिकायें पाई जाती हैं, शरीर के मध्य अधर भाग में तंत्रिका रज्जु पाई जाती हैं, जिससे प्रत्येक खंड गैन्ग्लिया एवं तंत्रिकायें निकलती हैं।
  12. संवेदी अंग - संघ ऐनेलिडा के जंतुओं में संवेदी अंग एक प्रमुख लक्षण है। इनमें विभिन्न प्रकार के संवेदी अंग जैसे- स्पर्श, स्वाद संवेदी अंग प्रकाश संवेदी कोशिकाएँ लेंस युक्त नेत्र और स्टेटोसिस्ट संवेदी अंग पाए जाते हैं।
  13. प्रजनन तंत्र - इनमें द्विलिंगी तथा एकलिंगी जंतु होते हैं इन जंतुओं के जनद अंग और जनद वाहिनियाँ भी विकसित होती है।
  14. परिवर्धन - संघ ऐनेलिडा में निषेचन आंतरिक तथा बाहरी होता है। द्विलिंगी जंतुओं में प्रत्यक्ष एवं एकलिंगी जंतुओं ट्रोकोफोर लार्वा अवस्था सहित अप्रत्यक्ष प्रकार का परवर्धन होता है।

संघ ऐनेलिडा का वर्गीकरण Classification of Phylum Annelida

संघ ऐनेलिडा का वर्गीकरण ऐनेलिडा संघ के लक्ष्णों जैसे प्रत्येक खंड में सीटी की संख्या शरीर में खंडों की संख्या के आधार पर चार वर्गों में किया गया है।

वर्ग - पोलिकीटा Policheata

सामान्य लक्षण common symptoms
1.इस वर्ग के जंतु अधिकांश समुद्री तथा मांसाहारी जंतु होते हैं। किन्तु कुछ सदस्य स्वच्छ जल में भी पाए जाते हैं।
2. इन जंतुओं का शरीर बेलनाकार वाह्य तथा आंतरिक रुप से भी खंडित होता है।
3. इनके शरीर के अग्रभाग पर सिर स्पष्ट जिस पर नेत्र रोमगुच्छक आदि उपस्थित होते हैं।
4. इनके शरीर में क्लाइटेलम का अभाव होता है।
5. इन जंतुओं में प्रचलन पैरापोड़िया के द्वारा होता है जिस पर शूक उपस्थित होते हैं।
6. लिंग पृथक होते हैं, जबकि जनद अस्थाई तथा अनेक खंडों में बनते हैं।
7. परिवर्धन कायांतरण के द्वारा होता है तथा ट्रोकोफोर लार्वा पाया जाता है।

इस वर्ग को दो उप वर्गों में बांटा गया है:-

  1. इरेन्शिया (Errantia)
  2. सीडेंटेिरया (Sedentaria)

वर्ग - आर्कीएनिलिडा Archiannelida

सामान्य लक्षण (common symptoms)
1. यह प्राणी समुद्री संकीर्ण लम्बे और बेलनाकार होते हैं।
2. इन प्राणियों का खंड विभाजन आंतरिक पैरापोडिया एवं शूक सीटी अनुपस्थित होते हैं।
3. इनके शरीर वाह्य विखंडन अस्पष्ट होता है।
4. यह प्राणी एकलिंगी होते हैं। जिनमें जनद केवल जनदकाल में ही पाए जाते हैं।
5. इनके  परिवर्धन में ट्रोकोफोर लार्वा पाया जाता है।

वर्ग - ओलीगोकीटा Oligochaeta

सामान्य लक्षण (common symptoms)
1. यह प्राणी नम भूमि में तथा स्वच्छ जल में भी पाए जाते हैं।
2. इन प्राणियों का सिर अस्पष्ट तथा उपांग अनुपस्थित होते है।
3. इनमें चलन काइटिन की बनी S प्रकार की आकृति की सीटीयों के द्वारा होता है।
4. इस वर्ग के जंतुओं में क्लाइटेलम उपस्थित होता है। यह प्राणी उभयलिंगी होते है।
5. इस वर्ग के जंतुओं में जनन नलिकाएँ पाई जाती हैं।
6. इस वर्ग के जंतुओं में निषेचन कोकून के बाहर होता है, तथा अंडे कोकून में इकट्ठे होते हैं।

वर्ग - हीरूडिनिया Hirudinea

सामान्य लक्षण common symptoms
1. यह प्राणी प्रायः स्वच्छ जल में पाए जाते हैं। जो स्वतंत्र एवं पर परजीवी के रूप में होते हैं।
2. इनका शरीर हमेशा चपटा लसलसा बाह्यरूप खंडित प्रत्येक खंड फिर से खंडित होता है।तथा खंडों की संख्या निश्चित होती है। इस वर्ग के प्राणियों के सिर एवं स्पर्शकों का अभाव होता है।
3. शरीर के आगे तथा पीछे बाले सिरे पर चूषक  उपस्थित होते हैं। जो चिपकने, चलने में मदद करते हैं।
4. देहगुहा में बोट्रीआयडल ऊतक भरे होते हैं।
5. इस वर्ग के प्राणी उभयलिंगी होते हैं।
6. इनमें निषेचन आंतरिक तथा एक नर तथा एक मादा जनन छिद्र होता है।

फाइलम एनलिडा के दो उदाहरण Phylum Annelida Ke Do example

फाइलम एनेलिडा के दो उदाहरण निम्न प्रकार हैं

ऐनेलिडा संघ के लक्षण
हीरुडिनेरिया 

1. हिरूडिनेरिया Hirudinea

वर्गीकरण classification

  1. संघ (phylum) - ऐनेलिडा (Annelida)
  2. वर्ग (class) - हीरूडिनिया (Hirudinea)
  3. गण (order) - ग्नेथोबडलाइदा  (Gnathobdellida)
  4. वंश ( genus) - हिरूडिनेरिया (Hirudinaria)

सामान्य लक्षण common symptoms

  1. यह प्राणी स्वच्छ जल में पाया जाने वाला प्राणी होता है, जिसे सामान्य जौंक कहा जाता है. यह प्राणी बाह्य परजीवी के रूप में होता है।
  2. इसका शरीर 12 से 34 सेमी लंबा तथा यह गहरे हरे भूरे रंग का पृष्ठ अधरतल पर चपटा तथा बाहर से  33 सम खंडों में विभाजित होता है।
  3. सिर अविकसित अग्र अधरतल पर होता है। तथा मुख चूषक उपस्थित होते है।
  4. इनमें एक से पांच खंडों पर पृष्ठ तल पर एक एक जोड़ी नेत्र तथा 22 वें खंड के अधर तल पर
  5. एक जोड़ी उत्सर्गिका छिद्र तथा 10 वे खंड में नर और 11 वे खंड में  मादा जनन छिद्र पाए जाते हैं।
  6. इस प्राणी में रक्त चूषक स्वसन देहभित्ति के द्वारा होता है।
  7. पश्च सिरे पर एक बड़ा चूषक पाया जाता है।
  8. यह प्राणी द्विलिंगी होते है।

ऐनेलिडा संघ के लक्षण
ऐरेनिकोला 

2. ऐरेनिकोला Arenicola

वर्गीकरण Classification
  1. संघ (Phylum ) - ऐनेलिडा (Annelida)
  2. वर्ग (Class) - पोलिकीटा (Polychaeta)
  3. वंश (Genus) - ऐरेनिकोला (Arenicola)

सामान्य लक्षण Common Symptoms

  1. इस जीव को लग या लोब वर्म कहते है।
  2. इस जीव का शरीर लंबा बेलनाकार में  20 सेंटीमीटर तक लंबा हरा भूरे रंग का होता है।
  3. शरीर तीन भागों में अग्र मध्य और पश्च भाग में विभाजित होता है।
  4. इस जीव का अग्र भाग मोटा जिसमें पेरीस्टोमियम जिसमें प्रथम 6 सेटीजेरस खंड होते है।
  5. मध्य भाग में 13 वे खंड में सीटी एवं शाखान्वित क्लोम पाए जाते हैं।
  6. पश्च भाग पतला अनेक खंडो बाला जिसमें सीटी पैरापोड़िया और क्लोम का अभाव होता है।
  7. प्रोसटोमियम के आधर तल में मुख पाया जाता है।
  8. इस जीव में 6 जोड़ी उत्सर्गिका पायी जाती है. जो मछली को पकड़ने का काम करती है।

दोस्तों इस लेख में आपने ऐनेलिडा संघ के लक्षण (Phylum of Annelida) संघ ऐनेलिडा का वर्गीकरण नामकरण तथा संघ ऐनेलिडा के दो उदाहरण पड़े आशा करता हूं या लेख आपको अच्छा लगा होगा।

FAQs for Annelida

Q.1. ऐनेलिडा के उत्‍सर्जी अंग का नाम बताइए?

Ans. ऐनेलिडा में उत्सर्जन नेफ्रीडिया नामक संरचना से होता है।

Q.2. संघ ऐनेलिडा के दो लक्षण लिखिए?

Ans. ऐरेनिकोला, हिरूडिनेरिया संघ ऐनेलिडा के दो लक्षण है।

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