राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 pdf Rashtriya shiksha niti 1968
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 क्या थी What was Rashtriya shiksha niti 1968
शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षा के संदर्भ में कोठारी आयोग ने (1961 से 1966) अपनी एक रिपोर्ट भारत सरकार को 29 जून 1966 को सुपुर्द की और इसके 9 महीने के पश्चात भारत सरकार के द्वारा 5 अप्रैल 1967 को संसद सदस्यों की एक समिति का गठन कराया गया और इस समिति को तीन प्रकार के कार्य भी दिए गए, जिसमें पहला कार्य कोठारी आयोग के शिक्षा के संदर्भ में जो सुझाव थे
उन पर गंभीरता से विचार करना था, जबकि दूसरा कार्य था राष्ट्रीय शिक्षा नीति का ड्राफ्ट बनाना और तीसरा कार्य उसके क्रियान्वयन के लिए रूपरेखा प्रस्तुत करना तैयार करना था। संसद सदस्यों की बनाई हुई समिति ने कोठारी आयोग के द्वारा दिए गए शिक्षा के संदर्भ के सुझावों का गंभीरता से अध्ययन किया तथा भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें सबसे पहले समिति ने शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाने पर बल दिया, इसके पश्चात सामाजिक समानता, सामान्य विद्यालय, पड़ोस विद्यालय के साथ ही भाषा नीति कार्य अनुभव चरित्र निर्माण विज्ञान शिक्षा शोध और शैक्षिक अवसर की समानता पर विभिन्न गुणात्मक सुधार करने के लिए बल दिया,
जबकि संसद की समिति ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार के शैक्षिक उत्तरदायित्व भी निर्धारित किये। संसद समिति की यह रिपोर्ट 1968 में शीतकालीन अधिवेशन में प्रस्तुत हुई जिस पर लंबी चर्चा हुई लंबी बहस हुई तत्पश्चात 24 जुलाई 1968 को भारत सरकार ने इसकी विधिवत घोषणा कर दी और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 लागू कर दी गई।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के मूल तत्व Rashtriya shiksha niti 1968 ke Mool Tatva
- राष्ट्रीय महत्व का विषय होगा शिक्षा:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अनुसार शिक्षा को राष्ट्रीय महत्व का विषय माना गया है। लोकतंत्र को अधिक मजबूत बनाने के लिए स्वतंत्रता, समानता, न्याय, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों का विकास किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय एकता को मजबूत इन्हीं के द्वारा कर सकते हैं, उत्पादन में वृद्धि के साथ ही राष्ट्र के आर्थिक विकास में भी योगदान तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में आधुनिकीकरण जरूरी है।
- शिक्षा व्यवस्था में केंद्र राज्य संबंध:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में इस बात पर बल दिया गया, कि शिक्षा के संदर्भ में केंद्र और राज्य दोनों मिलकर अपने-अपने उत्तरदायित्व को निभाएंगे केंद्र और राज्य दोनों के उत्तरदायित्व अलग-अलग होंगे, केंद्र सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्धारण करना, केंद्रीय विश्वविद्यालय राष्ट्रीय महत्व की शिक्षा संस्थानों का प्रबंध, उच्च शिक्षा का प्रबंध, तकनीकी अनुसंधान आदि का प्रबंध संस्कृतिक समझौते आदि पर अपने उत्तरदायित्व समझेगी और उनका निर्वाहन करेगी, जबकि राज्य सरकार केंद्रीय शिक्षा नीति के अनुसार राज्य स्तर पर शिक्षा को नियोजित करेगी, वित्त व्यवस्था करेगी शैक्षिक प्रशासनिक ढांचे पर नियंत्रण रखेगी और शिक्षा के विभिन्न स्तरों में गुणवत्ता बनाए रखेगी।
- केंद्रीय बजट का 6% शिक्षा पर व्यय :- इस शिक्षा नीति में केंद्रीय बजट का 6% शिक्षा पर व्यय किया जाएगा, जिससे शिक्षा के क्षेत्र में अधिक मजबूती होगी और विकास होने से शिक्षा जन जन तक पहुंचेगी और कोई भी व्यक्ति शिक्षा से वंचित नहीं रहेगा।
- संपूर्ण देश में 10+2+3 शिक्षा संरचना लागू :- संपूर्ण देश में एक ही प्रकार की शिक्षा संरचना लागू होगी, जो 10+2+3 प्रकार की होगी। इसमें 10 वर्ष की शिक्षा के लिए आधारभूत पाठ्यक्रम +2 स्तर पर विशेष पाठ्यक्रम, जिसमें व्यवसायिक शिक्षा तथा +3 स्नातक पाठ्यक्रम का प्रावधान होगा और प्रत्येक विश्वविद्यालय को अपने पाठ्यक्रम निर्धारित करने की स्वतंत्रता होगी।
- प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य और निशुल्क:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अनुसार प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य और निशुल्क होगी। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 45 में भी कक्षा 6 से 14 आयु वर्ग तक के बच्चों के लिए अनिवार्य और नि:शुल्क प्राथमिक शिक्षा की बात कही गई है , इसीलिए 5 वर्ष के अंदर 6 से 11 आयु वर्ग के बच्चों को और अगले 5 वर्षों में 11 से 14 आयु वर्ग के बच्चों को क्रमशः निम्न प्राथमिक और उच्च प्राथमिक शिक्षा नि:शुल्क और अनिवार्य दी जाएगी।
- माध्यमिक शिक्षा :- जिन क्षेत्रों में माध्यमिक शिक्षा की मांग होगी वहाँ पर माध्यमिक शिक्षा उपलब्ध होगी। माध्यमिक शिक्षा के साथ व्यावसायिक शिक्षा की भी व्यवस्था की जाएगी। माध्यमिक स्तर पर त्रिभाषा सूत्र लागू किया जाएगा। प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में या अन्य किसी भारतीय भाषा में शिक्षा, जबकि अंग्रेजी का अध्ययन अनिवार्य होगा माध्यमिक स्तर पर किसी एक और राष्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय महत्व की भाषा का अध्ययन होगा।
- प्रतिभाशाली छात्रों की पहचान:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में कहा गया है, कि प्राथमिक स्तर के पश्चात ही प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं की पहचान की जाएगी तथा उनके समुचित विकास तथा समुचित व्यक्ति की विकास के लिए उचित व्यवस्थाएँ राज्य सरकार के द्वारा की जाएगी तथा उनको आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी।
- विश्वविद्यालय शिक्षा का प्रसार :- विश्वविद्यालय कार्यक्रम में सुधार किया जाएगा बढ़ती हुई छात्रों की संख्या के कारण महाविद्यालय में शायंकालीन पाठशालाएं भी लगाई जाएगी, जबकि अंशकालिक और पत्राचार पाठ्यक्रम भी प्रस्तुत किए जाएंगे। विश्वविद्यालय को स्वायत्तता प्रदान होगी उप कुलपति पद पर प्रशासनिक पद प्राप्त शिक्षाविदों को नियुक्त किया जाएगा। प्रथम स्नातक पाठ्यक्रम में इंटर छात्रों को एडमिशन मिलेगा, जबकि स्नातकोत्तर स्तर पर केवल योग्य छात्रों को ही एडमिशन मिलेगा।
- कृषि व्यावसायिक तकनीकी इंजीनियरिंग शिक्षा:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में बताया गया, कि कृषि व्यावसायिक तकनीकी और इंजीनियरिंग शिक्षा के क्षेत्र में भी विकास किया जाएगा। कृषि विज्ञान के सामान्य ज्ञान के लिए पॉलिटेक्निक विद्यालय खोले जाएंगे, जबकि उच्च पद के लिए विश्वविद्यालय में कृषि संकाय स्थापित होंगे। प्रत्येक राज्य में एक कृषि विश्वविद्यालय अवश्य स्थापित होगा। वही व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा के स्तर को और ऊंचा किया जाएगा और औद्योगिक संस्थानों को विकसित किया जाएगा। प्रथम 10 वर्षीय छात्र में विज्ञान और गणित की शिक्षा अनिवार्य कर दी जाएगी और विश्वविद्यालय स्तर पर विज्ञान की शिक्षा के लिए अलग से प्रबंधन और शोध कार्य के लिए प्राथमिकता होगी।
- परीक्षा प्रणाली में सुधार:- बाह्य परीक्षाओं के महत्व को कम करके आंतरिक और सतत मूल्यांकन की परीक्षाएँ कराई जाएगी। माध्यमिक स्तर पर कक्षा 10 के बाद पहली सार्वजनिक परीक्षा होगी और किसी भी स्तर की परीक्षा को विश्वसनीय और बैध बनाने की कोशिश की जाएगी। परीक्षा परिणाम में बाह्य और आंतरिक मूल्यांकन के प्राप्तांक अलग-अलग दिखाए जाएंगे और श्रेणी के स्थान पर ग्रेड दिए जाएंगे।
- शिक्षकों के स्तर और प्रशिक्षण में सुधार:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अनुसार शिक्षकों के वर्तमान स्तर में सुधार किया जाएगा उनके वेतनमान भत्ते बढ़ाए जाएंगे तथा उनकी सुविधाओं को बढ़ाया जाएगा शिक्षकों के लिए त्रिभाषा लाभ योजना जीपीएफ बीमा और पेंशन लागू होगी जिससे लोग शिक्षक बनने के लिए आकर्षित होंगे शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय खोले जाएंगे, जिनसे शिक्षकों की प्रशिक्षण की व्यवस्था होगी और शिक्षक छात्रों को ठीक प्रकार से शिक्षित कर पाएंगे।
- छात्र कल्याण योजनाएँ :- इस नीति के अंतर्गत बल दिया गया कि छात्रों के विकास के लिए विभिन्न छात्र कल्याण योजनाएं महाविद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर पर चलाई जाएगी, जिनमें सस्ते जलपान गृह छात्रावासों की व्यवस्था होगी। वहीं छात्र-छात्राओं के स्वास्थ्य के लिए खेलकूद की व्यवस्था की जाएगी और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
- शैक्षिक अवसरों की समानता की प्राप्ति:- इस नीति के अंतर्गत शैक्षिक अवसरों की समानता की प्राप्ति की जाएगी। हर क्षेत्र हर गांव में शैक्षिक अवसरों की समानता की वकालत होगी। सभी बच्चों को चाहे वह किसी भी जाति लिंग धर्म स्थान आदि से आते हो उनके साथ शिक्षा के क्षेत्र में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा। सभी को शैक्षिक अवसर बिल्कुल सामान प्राप्त होंगे, जहाँ पर बालक बालिकाएँ अधिक हैं, वहाँ पर प्राथमिक विद्यालय खोले जाएंगे, अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों और कबीलों के बच्चों की भी शिक्षा की व्यवस्था होगी वही शारीरिक दृष्टि से विकलांग मानसिक दृष्टि से विकलांग और पिछड़े बालकों के लिए अलग से विद्यालय खोले जाएंगे।
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