माध्यमिक शिक्षा आयोग की सिफारिशें Recommendations Secondary Education Commission

माध्यमिक शिक्षा आयोग की सिफारिशें Recommendations Secondary Education Commission

हैलो नमस्कार दोस्तो आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख माध्यमिक शिक्षा आयोग गठन सिफारिशें (Secondary Education Commission Constitution Recommendations) में।

दोस्तों इस लेख में आप माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन उद्देश्य, के साथ माध्यमिक शिक्षा आयोग द्वारा माध्यमिक शिक्षा के सुधार के लिए सिफारिशें भी पड़ेंगे, तो आइये शुरू करते है, यह लेख माध्यमिक शिक्षा आयोग गठन सिफारिशें:-

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माध्यमिक शिक्षा आयोग की सिफारिशें

माध्यमिक शिक्षा आयोग क्या है What is Secondary Education Commission

जब भारत आजाद हो गया तो भारत में विभिन्न प्रकार के परिवर्तन होने लगे, जिनमें सामाजिक परिवर्तन के साथ राजनैतिक परिवर्तन और शैक्षिक परिवर्तन भी देखने को मिलने लगे और शिक्षा की मांग चारों ओर से होने लगी इसीलिए शिक्षा के सुधार में और माध्यमिक शिक्षा

के पुनः संगठन की आवश्यकता भारत देश में महसूस होने लगी इसलिए भारत के केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (Central Advisory Board of Education) के द्वारा माध्यमिक शिक्षा की जांच की गई, जिसके लिए एक आयोग की स्थापना हुई नियुक्ति हुई, जिसे माध्यमिक शिक्षा आयोग के नाम से जाना गया। इस आयोग के अध्यक्ष

लक्ष्मणस्वामी मुदालियर जी थे, इसलिए इस आयोग को मुदालियर आयोग (Mudalior Commission) के नाम से भी जाना जाता है। माध्यमिक शिक्षा आयोग के गठन का प्रमुख उद्देश्य बालकों का सर्वांगीण विकास बालकों में व्यक्तित्व की गरिमा स्थापित करना उनमें व्यवसायिक कुशलता लाना था।

माध्यमिक शिक्षा आयोग के उद्देश्य Aims of Secondary education commission 

माध्यमिक शिक्षा आयोग का उद्देश्य आदर्श नागरिकों का निर्माण करना था। हमारी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य छात्रों में देश की सांस्कृतिक परंपरा का ज्ञान विचार स्वतंत्र भाषण और लेखन में स्पष्टता अनुशासन सहयोग तथा देशभक्त आदि गुणों का विकास करना था।

माध्यमिक शिक्षण संस्थाओं में विश्व बंधुत्व की भावना को विकसित करने का विशेष उद्देश्य माध्यमिक शिक्षा आयोग का माना जाता है।

विद्यालयों में विद्यार्थियों को औद्योगिक शिक्षा Industrial Education देकर उनको व्यवसायिक स्तर को मजबूत बनाना था, ताकि वह भविष्य में अपना व्यवसाय स्थापित करने मैं सक्षम हो सकें।

माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार थी, कि विद्यार्थियों का सर्वागीण विकास हो और इसके लिए पाठ्यक्रम में कई तरह के विशेष सुधार भी किए गए थे।

माध्यमिक कक्षाओं में विद्यार्थियों को अपने राष्ट्रीय, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक गतिविधियों का ज्ञान कराते हुए उनसे छात्रों में नेतृत्व संबंधी गुणों का विकास करना इसका उद्देश्य था।

माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन Secondary Education Commission Constitution

माध्यमिक शिक्षा आयोग, जिसे मुदालियर आयोग के नाम से भी जाना जाता है, का गठन सन 1948 में केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने भारत सरकार के समक्ष माध्यमिक शिक्षा की जांच के लिए एक आयोग की नियुक्ति का विचार प्रस्तुत किया और इसी विचार के फलस्वरूप 23 सितंबर 1992 को डॉ लक्ष्मणस्वामी

मुदालियर की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन किया गया। इस माध्यमिक शिक्षा आयोग के गठन का अध्यक्ष डॉक्टर लक्ष्मणस्वामी मुदालियर को बनाया गया इसलिए इसको मुदालियर आयोग के नाम से भी जाना जाता है। इस आयोग का गठन का कार्य

भारत की तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा के सभी प्रकार के पक्षो की जांच करना था और इस विषय में रिपोर्ट करना था माध्यमिक शिक्षा आयोग ने अपना कार्य तीव्रता से किया और 29 अगस्त 1953 को अपना प्रतिवेदन भारत सरकार के समक्ष प्रस्तुत कर दिया।

माध्यमिक शिक्षा आयोग में कुल कितने सदस्य थे Member of secondary education commission

माध्यमिक शिक्षा आयोग की नियुक्ति के समय इसमें कुल 9 सदस्य थे:-

  1. डॉ. लक्ष्मण स्वामी मुदालियर अध्यक्ष उप कुलपति मद्रास विश्वविद्यालय
  2. डॉ कालू लाल श्रीमाली प्रिंसिपल विद्या भवन टीचर्स कॉलेज उदयपुर
  3. श्रीमती हनसा मेहता उपकुलपति बड़ौदा विश्वविद्यालय बड़ौदा
  4. श्री जॉन क्रिस्टी प्रिंसिपल जीसस कॉलेज ऑक्सफोर्ड
  5. डॉक्टर केनेथ रेस्ट विलियम एसोसिएट डायरेक्टर सदन रीजनल एजुकेशन बोर्ड अटलांटा अमेरिका
  6. श्री केजी सैयदेन
  7. श्रीजे.ए. तारापुरवाला
  8. श्री एम. टी व्यास
  9. डॉक्टर एनएन बसु प्रिंसिपल सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन दिल्ली बोर्ड अटलांटा अमेरिका 

माध्यमिक शिक्षा आयोग की सिफारिशें Recommendations of the Secondary Education Commission

माध्यमिक शिक्षा आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के सभी पक्षों की गहराई से जांच की और इस विषय में विभिन्न प्रकार के सुझाव सरकार के सामने प्रस्तुत किए, जिन्हें निम्न प्रकार से आसानी से समझा जा सकता है:-

माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य Objectives of Secondary Education

माध्यमिक शिक्षा आयोग ने भारत देश की आवश्यकता को ठीक प्रकार से समझ कर माध्यमिक शिक्षा के निम्न प्रकार के उद्देश्य बताएँ हैं:-

  1. जनतांत्रिक नागरिकता का विकास :- भारत के लोगों में नागरिकता के मूल्यों का समावेश करने के लिए मुख्य उत्तरदायित्व माध्यमिक शिक्षा का ही होना चाहिए।माध्यमिक शिक्षा आयोग ने यह स्पष्ट किया है, कि बालकों के विचारों में स्पष्टता, स्वच्छता, सांस्कृतिक परंपराओं का ज्ञान, भाषण एवं लेखन में स्पष्टता, सामूहिक भावना, सहयोग, सहिष्णुता, सहज गुण संपन्न का अनुशासन आदि गुणों का विकास माध्यमिक शिक्षा के द्वारा विभिन्न प्रकार के नियम बनाकर आसानी से किए जा सकते हैं।
  2. सर्वागीण व्यक्तित्व का विकास :- माध्यमिक शिक्षा आयोग ने सुझाव दिया कि बालकों के सभी प्रकार के विकास के लिए इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था की योजना बनाई जानी चाहिए, जिनमें साहित्यिक सांस्कृतिक कलात्मक और व्यवसाय से संबंधित शिक्षा दी जाती हो।
  3. व्यवसाय कुशलता में वृद्धि :- माध्यमिक शिक्षा में व्यवसायिक कुशलता का समावेश भी बहुत ही जरूरी होता है, क्योंकि बालकों में विभिन्न प्रकार के व्यवसाय कुशलताऐं विकसित हो जाने पर वे अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के व्यवसायों को आसानी से समझ सकते हैं और उनमें से सबसे व्यवसाय को चुन सकते हैं और अपने पैरों पर खड़े होकर जीवन में आने वाली समस्याओं को समाप्त कर सकते हैं।
  4. नेतृत्व का विकास :- माध्यमिक शिक्षा के द्वारा ही छात्रों में नेतृत्व के गुणों का विकास करना बहुत आवश्यक और जरूरी होता है, क्योंकि नेतृत्व जनतंत्र की सफलता के लिए बहुत ही आवश्यक माना जाता है।

माध्यमिक शिक्षा का संगठनात्मक ढांचा Organizational Structure of Secondary Education

माध्यमिक शिक्षा आयोग के द्वारा तत्कालीन आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए माध्यमिक शिक्षा के पूरा संगठन संबंधित निम्न प्रकार की सिफारिशें प्रस्तुत की है:-

  1. माध्यमिक शिक्षा की अवधि 7 वर्ष की होनी चाहिए।
  2. यह शिक्षा 17 वर्ष तक की आयु के बालक और बालिकाओं के लिए अनिवार्य होनी चाहिए।
  3. इंटरमीडिएट कक्षा को समाप्त कर दिया जाए और उसका प्रथम वर्ष माध्यमिक शिक्षा और द्वितीय वर्ष स्नातक शिक्षा से संबंधित होना चाहिए।
  4. बहुउद्देशीय विद्यालयों की स्थापना की जानी चाहिए।
  5. ओधोगिक शिक्षा के विकास के लिए बड़े-बड़े उद्योगों पर उद्योग शिक्षा कर लगाया जाना चाहिए।
  6. माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं को गृह उपयोगी कार्यों के प्रति जैसे बालिकाओं के लिए गृह विज्ञान विषय की अनिवार्य शिक्षा दी जानी चाहिए।
  7. ग्रामीण क्षेत्रों के माध्यमिक विद्यालयों में कृषि शिक्षा, बागवानी, पशुपालन और कुटीर उद्योगों से संबंधित शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए।
  8. प्रत्येक प्रांत में आवासीय माध्यमिक विद्यालय की स्थापना होनी चाहिए, जबकि विकलांग बालकों के लिए शिक्षा के भी उचित प्रबंध होने चाहिए।

माध्यमिक विद्यालयों का पाठ्यक्रम Secondary school curriculum

माध्यमिक विद्यालय में जिस प्रकार के पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं, उन पाठ्यक्रमों में संशोधन होना चाहिए, इसके लिए माध्यमिक शिक्षा आयोग ने निम्न प्रकार के सुझाव दिए हैं :-

  1. माध्यमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम का संबंध व्यवहारिक सामाजिक जीवन से होना चाहिए।
  2. पाठ्यक्रम बालकों को विभिन्न प्रकार के अनुभव प्रदान करें इस प्रकार से निर्मित किया जाना चाहिए, जबकि वह पाठ्यक्रम लचीला भी होना चाहिए और पाठ्यक्रमों में सहसंबंध अवश्य होने चाहिए।
  3. माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम के अंतर्गत मनोरंजनात्मक क्रियाओं का समावेश भी होना चाहिए।
  4. मिडिल या जूनियर हाई स्कूल स्तर पर भाषाएँ समाज विज्ञान, सामान्य विज्ञान, गणित, कला, संगीत, शिल्प तथा शारीरिक शिक्षा आदि को पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाना चाहिए।
  5. हायर सेकेंडरी पाठ्यक्रम में विविधता हो तथा शिक्षा छात्रों की योग्यता और अभिरुचियों के अनुकूल होनी चाहिए।
  6. हायर सेकेंडरी पाठ्यक्रम में निम्नलिखित 7 समूह होने चाहिए:-

मानव विज्ञान (Humanities) विज्ञान (Science) कृषि विज्ञान (Agriculture) टेक्निकल विषय (Technical Subject) वाणिज्य विषय (Commercial Subjects) ललित कलाएं (Fine Arts) गृह विज्ञान (Home Science)

शिक्षण की प्रावैधिक विधियाँ Technical Methods of Teaching

माध्यमिक शिक्षा आयोग ने शिक्षण की विधियों के बारे में कहा है, कि विद्यालय में उन शिक्षण विधियों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए, जिनका उद्देश्य केवल कुशलतापूर्वक ज्ञान प्रदान करना होता है।

माध्यमिक शिक्षा आयोग ने कहा है, कि शिक्षण विधियाँ इस प्रकार की होनी चाहिए, जिनसे छात्रों में उपयुक्त मूल्यों दृष्टिकोण तथा कार्य करने की आदतों का विकास हो सके, शिक्षण उद्देश्यपूर्ण, मूर्त एवं वास्तविक हो इसके लिए विभिन्न क्रिया पद्धतियों, योजना पद्धतियों को शिक्षण विधियों में स्थान दिया जाना चाहिए।

चरित्र निर्माण की शिक्षा Character building education

छात्रों के चरित्र का निर्माण करना माध्यमिक शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण दायित्व होता है, इसीलिए स्कूल के प्रत्येक कार्यक्रम में चारित्रिक निर्माण पर अधिक बल दिया जाना चाहिए। उत्तम अनुशासन के लिए शिक्षक और छात्रों के मध्य अच्छे संबंध होने चाहिए,

पाठ्य सहगामी क्रियाओं का विकास शैक्षिक संभावनाओं के संदर्भ में किया जाना चाहिए, माध्यमिक शिक्षा स्तर पर एनसीसी और एनएसएस प्राथमिक चिकित्सा और रेडक्रॉस संबंधी कार्यक्रम ठीक प्रकार से चलाया जाना चाहिए, जिनके उपयोग से चरित्र निर्माण को अधिक बल प्राप्त होता है।

परीक्षा और शैक्षिक मूल्यांकन Exams and Educational Assessment

परीक्षा और शैक्षिक मूल्यांकन के संदर्भ में माध्यमिक शिक्षा आयोग ने कहा है, कि वह परीक्षाओं की संख्या में पर्याप्त कमी की जानी चाहिए, जबकि निबंधात्मक परीक्षाओं के स्वरूप में परिवर्तन होना चाहिए, जिससे इन परीक्षाओं की कृतियों का निराकरण आसानी से किया जा सके।

छात्रों के मूल्यांकन का आधार आंतरिक परीक्षाएँ, विद्यालय अभिलेख तथा नियतकालिक परीक्षाएँ अवश्य होनी चाहिए, छात्रों का मूल्यांकन आंकिक ना होकर प्रतीकात्मक किया जाना चाहिए।

सेकेंडरी पाठ्यक्रम की अवधि समाप्त हो जाने पर एक सार्वजनिक परीक्षा अवश्य कराई जानी चाहिए।

दोस्तों यहाँ पर आपने माध्यमिक शिक्षा आयोग गठन सिफारिशें (Secondary Education Commission) पढ़ी। आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।

FAQs For Seconday education commission

Q.1. माध्यमिक शिक्षा आयोग की स्थापना कब की गई?

Ans. भारत सरकार के द्वारा 23 सितंबर 1952 को माध्यमिक शिक्षा आयोग की स्थापना की गई।

Q.2. माध्यमिक शिक्षा आयोग के अध्यक्ष कौन थे?

Ans. माध्यमिक शिक्षा आयोग के अध्यक्ष डॉक्टर लक्ष्मणस्वामी मुदालियर थे।

Q.3. माध्यमिक शिक्षा आयोग में कुल कितने सदस्य थे?

Ans. माध्यमिक शिक्षा आयोग में कुल कुल 9 लोग थे जिनमें अध्यक्ष, सदस्य सचिव तथा सहायक सचिव के अतिरिक्त अन्य सदस्य थे।

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